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पृष्ठ:प्राचीन चिह्न.djvu/९८

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९——श्रीरङ्गजी का मन्दिर

मदरास-प्रान्त में त्रिचनापल्ली नामक एक प्रसिद्ध नगर,कावेरी-नदी के तट पर, बसा हुआ है। नदी के उस पार, लगभग एक मील की दूरी पर, उत्तर-पश्चिम की ओर, ओरङ्गजी का एक विशाल और बहुत प्राचीन मन्दिर है। यह मन्दिर ,भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से है। यह इतना बड़ा है कि भारत का सबसे बड़ा मन्दिर कहा जा सकता है। मन्दिर ही के कारण नदी के उस पार आबादी भी बहुत बढ़ गई है। इस आबादी ने अब एक छोटे से नगर का रूप धारण किया है। इसका नाम भी मन्दिर के नामानुसार श्रीरङ्गम पड़ गया है। त्रिचनापल्लो और श्रीरङ्गम के बीच में, कावेरी-नदी के ऊपर, बत्तीस मिहराबो का एक पुल बना हुआ है। उसी पर से होकर यात्री लोग श्रीरङ्गजी के दर्शन करने जाते हैं।

मन्दिर, अर्थात् देवस्थान, एक-एक करके सात परकोटो के भीतर है। सबसे बाहर का कोट लगभग २,८८० फीट लम्बा और २,४७५ फीट चौड़ा है। उसमें पक्की सड़के बनी हुई हैं और एक बाज़ार भी है। इस कोट में, दक्षिण की ओर, एक बड़ा फाटक है जो ४८ फ़ीट ऊँचा और १०० फीट चौड़ा है। इसी फाटक से लोग त्रिचनापल्ली आते-जाते हैं। फाटक में कई बड़ी-बड़ी शिलाये सीधी खडी हैं। उनमे से कोई-कोई