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पृष्ठ:प्राचीन चिह्न.djvu/९९

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ओरङ्गंजी का मन्दिर


४० फीट से भी अधिक ऊँची है। उनसे बहुत करके फाटक बनाने में सहायता ली गई होगी। फाटक की छत में भी बडी-बड़ी शिलाये लगी हैं। फाटक की छत पर चढ़ने से बाहरी कोट और उसके अन्तर्गत सब बाग-बागीचे और घर आदि का सारा दृश्य नेत्रों के सम्मुख आ जाता है। फाटक से थोड़ी ही दूर पर कावेरी-नदी की एक शाखा बहती है। इस कोट मे कुछ आबादी भी है।

सातवे कोट के भीतर छठा कोट है और छठे के भीतर पाँचवॉ। इसी प्रकार सब एक दूसरे के भीतर हैं। अन्त के कोट में श्रीरङ्गजी का मन्दिर है। इन सब कोटों में एक खास बात यह है कि प्रत्येक भीतरी कोट की इमारतें अपने-अपने बाहरी कोटो की इमारतों से आकार मे छोटी होती चली गई है।

छठे कोट में मन्दिर के पुजारी और कुछ अन्य ब्राह्मण रहते हैं। इस कोट में दो बड़े गोपुर पूर्व में, दो छोटे पश्चिम में, और तीन मझोले दक्षिण में बने हुए हैं। सब गोपुरों की छतो में रङ्गीन चित्रकारी है। उनका रङ्ग अभी तक ज्यों का त्यों बना हुआ है। ये चित्र देवी-देवताओं के हैं। चित्रों में उपासक लोग उपासना करते हुए भी दिखलाये गये हैं।

पॉचवे कोट में केवल ब्राह्मणों की आबादी है। चौथे में बहुत से बड़े-बड़े मण्डप हैं। एक मण्डप में मूर्तियों के बहु-मूल्य आभूषण रक्खे रहते हैं। इन आभूषणों में बहुमूल्य