पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/१०५

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हीरविजय सूरि शरमान अकबर बादशाह गाजी का- "सूबे मुलतान के बड़े बड़े हाकिम, जागीरदार, करोड़ी बार सब मुन्सद्दी (कर्मचारी) जान ले कि हमारी यही मानसिक इच्छा है कि मारे मनुप्यों और जोर-जंतुओं को सुख मिले, जिममे सब लोग अमन चैन से रहकर परमात्मा को मारायना में लगे रहे। इससे पहले शुभचिंतक तपम्पी अपचंद सूमि खरतरगच्छ दमारी सेवा में रहता था। जब उसकी भगनाति प्रकट हुई तर हमने उसको अपनी यही पशाही को मिहरवानियों में मिला लिया । उसने प्रार्थना की कि उमसे पहले हीरविजय सूरि ने सेवा में उपनियन म का गौरव मात किया था और पर माल १२ दिन मगि थे, जिाम बादशादी मुरकों में कोट जाय मागम आप भीर कोई प्रादमी किसी मी, माली और नरे साग जोगों को बटन है। उसकी माना RITTE गायो।प्रय में भी आशा करता fru TATE आभार मादाम म गरिदार लिए हमने मानी माग दशा में पRATमा Eि किपा, कामामी मे मगर RIRA माnamrakarमोनियर बोपना मानो ne fru TET गरी