१२० प्राचीन पडित और कवि मक्काम श्राजार जांदार । मोरे न गदद । व अस्ल खुद श्रॉनस्त कि ~ हजरते वेचूँ अज वराए श्रादमी चर्दी न्यामतहाय गूना मुहय्या करदा श्रस्त । दर हेच वक्त दर श्राजार जानवर न शवद् । वशिकमें खुदरा गोर हेबानात न साजद । लेकिन बजेहत् वाजे मसालह दानायान पेश तजवीज नमूदा अंद। दरीविला श्रानार्य जिनसिंह सूरि उर्फ मानसिंह व अरज अशरफ असकद रसानीद कि फरमाने कि काव्ल श्री यशरह सदर श्रज सुदूर याफ्ता बूद गुम शुदह । विनायरॉ मुताविक मजमून हमा फरमान मुजद्दद फरमान मरहमत फरमूदैम् । मे वायद कि हस्खुल मरतूर अमल नमूदा व तकदीम रसानद । । च अज फरमूदह तखल्लुफ व इनहिराफ न वरजंद । दरी वाव निहायत एहतमाम व दगन् अजीम लाजिम दानिस्ता तराइयुर घ तव दुल वकवायद शॉराह न दिहंद । तहरीरन् फीरोज रोज सी व यकुम माह सरदाद इलाही सन् ४६।" (१) “य रिसालए मुकरमुल हजरतस्सुलतानी दौलत-स्रो दर चौकी ( उमटे उमरा)।" (२) "जुब्दतुलआयान राय मनोहर दर नोयत वाळया- नबीसी, प्राजा लालचद् ।" जोधपूरनियामी मुशी देवीप्रसादजी ने इसका अनुवाद हिंदी में इस तरह किया है-
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