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पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/११३

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हीरविजय हि १२७ की जिद पॅधी हुई पुस्तक है और पांच रुपये में मिलती है। इसके न सर्ग में हीरविजय सूरि और अक्षर के समा गम का वर्णन है। उसमें भी प्राय पहा यात निनका उरलेस इस लेख में, ऊपर, पिया जा चुका है। इतिहान- रष्टि से यह फान्य यड़े महत्व का है। रचना इसफो प्राय. सरस और अर्थगाभीर्य-पूर्ण है। जून १६६२