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प्राचीन पंडित और कवि

प्राचीन पडित और कवि कालिदास, शूद्रक और क्षेमेंद्र, ये तीनों कवि भवभूति से पहले हुए है । इनकी उक्तियों की छाया भवभूति के पर्या में, अनेक स्थलों पर, पाई जाती है। यह चाहे इन करियों के काव्यों के पाठ से भवभूति के हृदय में उत्पन्न हुए सस्कार विशेष का फल हो, चाहे यों ही घुणाक्षर न्याय से पूर्व कवियों की उक्तियों का भाव उसकी उनियों में आ गया हो। कुछ ही क्यों न हो, कहीं-कहीं साम्य अवश्य है। अनेक विद्वानों का मत है कि भवभूति ने पहले महावीर । चरित, फिर मालतीमाधव और फिर उत्तररामचरित लिखा है। इन ग्रथों की लेख प्रणाली, इनके अर्थ-गौरव और इनके । रसाल भावों का विचार करने से यह सिद्धांत युक्तिसंगत जान पड़ता है। महावीरचरित में वोर, मालतीमाधव में भंगार और उत्तररामचरित में करण-रस की प्रधानता है। इन नाटकों में क्या गुण है, और क्यों भवभूति की इतनी प्रशंसा होती है, इन सब बातों का विचार विष्णु शास्त्री ने बड़ी ही योग्यता से अपने निबंध में किया है। अनेक उत्तमो. त्तम पद्य उद्धत करके उन्होंने उनकी युक्ति-पूर्ण समीक्षा की। है। भवभूति के नाटकों के कथानक की मी शास्त्रीजी ने प्रशंसा की है। परंतु मालतीमाधव के कथानक के संबंध में, डॉक्टर मांटारकर फी सम्मति उनकी सम्मति से नहीं मिलती। डॉक्टर साहर फा कथन है कि इस नाटक में जो श्मशान-वर्णन है, वह असंबद्ध सा है मृल कथानक में जा