सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१८
प्राचीन पंडित और कवि

प्राचीन पंडित और कवि यही भावना मन में उत्पन्न होती है कि चौद्ध धर्म निस्सार और वैदिक धर्म परम सारवान है। नाटक लिखने में भवभूति का श्रासन कालिदास से कुछ ही नीचे है। कोई-कोई तो उसे कालिदास का समकक्ष और कोई-कोई उससे भी चढ गया बतलाते हैं । भवभूति ने मनुष्यों के प्रांतरिक भावों का कहीं-कहीं ऐसा उत्कृष्ट और पेसा सजीव चित्र खींचा है कि उसे देखकर कालिदास का विस्मरण हो जाता है। खेद है, उसकी इस अद्भुत शक्ति का विकाश देखने और उसके द्वारा एक अकथनीय आनद प्राप्त करने के लिए केवल हिंदी जाननेवालों का मार्ग रद्ध-सा हो रहा है। हॉ, यह सत्य हे कि एक पुराने लेखक ने भवभूति के तीनों नाटकों के अनुवाद हिंदी में किए हैं, परंतु, जहाँ तक हम समझते हैं, उनके अनुवादों से भवभूति की अलौकिक कविता का अनुमान होना तो दूर रहा, उन्हें पढ़कर पढने- वालों के मन में मूल-कविता के विषय में घृणा उत्पन्न होने फा भय है। कहाँ भवभूति की सरस, प्रासादिक और महा- श्राहाद-दायिनी कविता और कहाँ अनुवादकजी की नीरस, अव्यवस्थित और दोपदग्ध अनुवादमाला ! परस्पर दोनों में सौरस्य विपयक कोई सादृश्य ही नहीं ! कौड़ी-मोहर, श्राफाश पाताल और ईख इंद्रायण का अंतर ! अपने कथन को सत्यताको सिद्ध करने के लिए हम, यहाँ पर,मालती- माधव से दो एक उदाहरण देना चाहते है, जिनको देखकर