भरभूति पदेनी चामुंडा के सम्मुख, समय-समय पर नरबलि दिया करते थे । मालतीमाधर का यह चित्र बौद्ध धर्म के अधःपतन का दर्शक है। वैदिक धर्म के अनुयायियों को श्रेष्ठता का चित्र वीरवरित और उत्तरचरित में है। इन दोनों गाटया में रामचद्र, राम, लर, पुश, सौधातकि, जनक, पशिष्ठ, विश्वामित्र और जान अादि यो वियों द्वारा भर- भूति ने ब्रह्मचारी, ग्राम्य, मानन्ध, राजा, प्रज्ञा और तपत्रिर्ग के प्राचारों और प्यपदारा पा ऐसा अन्दा श्रादर्श विमलाया है, जिसकी पेराने से वैदिक धर्म का स्वरुप नेनों में सन्मुग उपस्थित हो जाए और उस पर प्रांतरिफ अशा उपन्न हुए बिना नदी रती। गाँधी फशगुयायियों में पायरगानुरुप दो प्रकार पं. उप और नीच चित्र चिनिन पर पनि उनी उपता और जीना काभेर यही काश से दिखाया। इस पर प्रतीत तादि कवि ने यह सय पार धर्म को शुरयामा धित घरले प्रारमिगर देगा मन में उस साधनाया उ रने nिe fr । भगभूषक पrit रिमानों पर धर्मल पर लिए सपा Tarinirnा, पगु भने Totamare. में kिinar र मावि गरे, पो मार fan rain माटो far-ril