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प्राचीन पंडित और कवि

प्राचीन पडित और कवि यही भावना मन में उत्पन्न होती है कि बौद्ध धर्म निस्सार और वैदिक धर्म परम सारवान है। नाटक लिखने में भवभूति का श्रासन कालिदास से कुछ ही नीचे है। कोई-कोई तो उसे कालिदास का समकक्ष और कोई-कोई उससे भी बढ़ गया बतलाते हैं । भवभूति ने मनुष्यों के श्रांतरिक भावों का कहीं-कहीं ऐसा उत्कृष्ट और पेसा सजीव चित्र खींचा है कि उसे देखकर कालिदास का विस्मरण हो जाता है। खेद है, उसकी इस अद्भुत शक्ति का विकाश देखने और उसके द्वारा एक अकथनीय श्रानद प्राप्त करने के लिए केवल हिंदी जाननेवालों का मार्ग रद्ध-सा हो रहा है। हॉ, यह सत्य है कि एक पुराने लेखक ने भवभूति के तीनों नाटकों के अनुवाद हिंदी में किए हैं, परंतु, जहाँ तक हम समझते है, उनके अनुवादों से भवभूति की अलौकिक कविता का अनुमान होना तो दूर रहा, उन्हें पढ़कर पढ़ने- वालों के मन में मूल-कविता के विषय में घृणा उत्पन्न होने फा भय है। कहाँ भवभूति को सरस, प्रासादिक और महा- प्राहाद-दायिनी कविता और कहाँ अनुवादकजी की नीरस, श्रव्यवस्थित और दोषदग्ध अनुवादमाला ! परस्पर दोनों में सौरस्य विषयक फोई सादृश्य ही नहीं | कौड़ी-मोहर, आकाश पाताल और इंग्य इद्रायण का अंतर ! अपने कथन को सत्यताको सिद्ध करने के लिए हम, यहाँ पर, मालती- नाधर से दो एक उदाहरण देना चाहते है, जिनको देसकर