पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/२७

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भवभूति १६ पदनेवाले म्यालीपुलाफ-न्याय से मूल और अनुवाद का अंतर समम जायेंगे--- अपनी सती लागिका के धोये माघर का आलिंगन फरयो, अनंतर उसे पहचान, जय उससे मालती हट गई, नए माघय पहता है- पीटनस्त्वचि निपिप्त चापपोत्य निर्मुग्नपीनकुटफुमलयाऽनया में। फरिदारदरिचन्दनचन्द्रकात- निप्पदवलमृणाल हिमादिवर्ग.॥ मापा-माने पीन-पयोधर-कपी मुकुलों को धारण परनवाली इस मालनी ने, फरहार, परिचदन, चद्रकांत- मगि परा (सियार), मृणाल और दिम प्रादि शीतल पक्षाची कोपीभूत परफ, चन्द एफर निचोद, मेरी त्वचापर एन मारोप-सा रागादिया । इसपा यनुयाद मुनिए- अनु दुपार चंदन रस पोरी, दिरपत अग गृगाल निचोरी, उमरे उर (!)गी दिप पारति, __ कपूर तग धारि सायति । गुमका पriदा मृगास र दिम पर Er, मंदार को दो शिमल में पी सिपापी भूनकातिर पार में Eft. Tagranारोगा