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लोलियराज हे दामोर (अच्छी जयावाली)! तु मुझे यह बतला कि हाथियों के मस्तक का विदारग कौन करता है? उत्तर- 'सिंहा.' । यह भी यतला कि नाला कामिनी रतोत्सव के समय किस अन्यय का उशारा यार-यार करती है ? उत्तर- 'न' । यह भी तू यतला कि 'न' शब्द का सयोधन क्या है ? उत्तर-'न' और यही यतलाकि रम पित्त का नाश कौन मोपधि करती है ? उत्तर--'मिहानन' । अर्थात् "सिंहा, न,म"इन तीनों शन्दों को प्रपत्र करने से 'न' यागे होने के कारण सिंहा' के सिगो का लोप हो गया और "सिंहानन' शम्न सिद्ध हुआ। मिदानन नाम असे का। अरसे पे काढ़े से कपित्त आता रहता है। पंजीयन की कविता यदुन मनोहारिणी है। परंतु अब सधिन उदरमा उपत करने की जरूरत नहीं। लोलियराज की जितनी कविता उपलब्ध है उससे पद प्रमाणित होता कि अच्छे रवि थे। उनकी कविता में रिता शेष नहीं पर उन म्यानावित कपि होने का ममाम है। प्रस, १६३