प्राचीन पंडित और कवि परिहार करते हैं। हाफिज फारिस का सबसे अधिक प्यारा ओर प्रसिद्ध कवि है। फारिम के विद्वान् समालोचकों का मत है कि हाफिज की कविता निकम्मी-दापित-टहराई जा सकती है, परतु उसकी तुलना और पिसी कविता से नहीं की जा सकती। उसको करिता शमन्वयालंकार का सच्चा उदाहरण है। उसकी समता उसी से हो सकती है और किसी से नहीं । वह वही है। हाफिज ने जो कुछ कहा है, नया ही कहा है। उसकी उक्तियों में उच्छिष्टता नहीं। उसमें दोष हो सकते है, परंतु वैसे दोष उसी में पाये जा सकेंगे, और कहीं नहीं। उसकी कविता में जो रमणीरता है वह उसी में है। उसे अन्यत्र हूँढना व्यर्थ है। . हाफिज के यरावर प्रतिभाशाली कवि होना दुर्लभ है। उसके ममान ललित और मधुर-भापो दूसरा कवि, संस्कृत को छोड़कर, और भापायों में नहीं पाया जाता । हाफिज की कविता का शानद, उसके दीवान को पारसी ही में पढ़ने से, अच्छी तरह ना सकता है। अनुवाद में यह रस नहीं श्राता। हाफिज़ को, पडितराज जगन्नाथराय की तरह। अपनी कविता का गर्व भी था । उसने कई जगद, इस विषय में, गलियाँ कही है ये गालियाँ चाहे सचमुच हो अभिमान-जन्य हों और चाहे यों ही स्वाभाविक राति पर उसके मुंह से निकल गई हो। पर उसके मुंह से उसकी
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