पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/८१

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मुखदेव मिस १३ सुनते हैं, इसके समान होते ही उस बालक के शरीर में पावसंचार हो पाया। एक बार डोदियारा के राव मर्दनसिंह बीमार हुए। बीमारी यहाँ तक बढ़ी कि जीने की आशा न रही। उस समय सुखरजी अमेठी में थे। इसलिए वहाँ से उनको लाने के लिए श्रादमी गये । मिश्रजी आये तो नहीं, परंतु जो गोग उनको बुलाने गये थे उनसे उन्होंने कह दिया कि पपगि राप मर्दनसिंह की हालत बहुत बुरी है तथापि धे मरेंगे नहीं। यह कहकर उन्होंने दो सस्कृत-श्लोक और एक विकी सर्वया उनको दिया। सवेंया यह था- अरि मडल फोरि फने करिके पर-फौजन फारि के नाखिवे है। बहुसंख्यक छंद प्रबध बनाय हमें अस रावरो भाखिये है। अकुलाने कहा मरदाने श्रा रस श्रीनन ते तुम्हें चासिंहै। रघुनायक राम को मारे तुम्हे जग में रहिये अग रामि परिये पर करायमी दिया नाममि मिपमा हा में गंगा के किसान परेशानी मापी पिaathee मोमपारितामा प्राय; ms