मापने केवल इतना ही कहा कि अब यहाँ निशाकर रहने सगे है तो निशाचर दी रहेंगे। अापने कुपित होकर यह भी कहा कि हम क्या हमारे वश का कोई भी श्रादमी घर यहाँ न भायेगा। मुखदेवजी की पासी सत्य निकली। श्रर रारियाभेरा में सचमुच ही निशाचर रहते है। उनके वगजों में से केवल एक सुजान नामक मिध पुछ काल तक आडियाम्वेरा के राय के प्राथय में रहे। परतु उन पर का ममूल नाश हो गया । यह शायद मुखदेवजी के माशोधन का दो फरा हो।
दियारा छोटयर सुगदेवी निर यमर या गरे बार यहाँ पर अपनी पुरानी पुटीम दो लगे । यद्यपि सर मनसिंह ने बहुत मनाया और फिर पर यहाँ ले जाकी बहुम कोशिश की, पराप पिसी तरह जाने पर राजीन एएन एटनामों से सुरिदेवी को -तालमेर माना हो गए। परंतु राम-समानों में पंटनेचार या गए परने का प्रायो घमासा राग गया था। इसमें भालने फिर राजामय लेना चाहताना सापादित र नगरमा यही रहा frrenes अपनी मनानाशिमगार मंशीरामना Rimi r matirnar मारा Mr frerial