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प्राचीन पंडित और कवि

१८ प्राचीन पंडित और कवि सुखदेवजी को कई जगह बड़ी-बड़ी जागीरें मिलत थीं, परंतु, उनके वंशजों का कथन है, उन्होंने उनको लेन स्वीकार नहीं दिया। कहते थे कि हमको किसी प्रकार की संपत्ति अपेक्षित नहीं, जो कुछ दिन-भर में मिलता उसे शाम तक देवार्पण कर देना ही हम अपनी परिमित प्राप्ति का सदुपयोग समझते हैं। परंतु राजा देवीसिंह ने बहुत कुछ कह-सुनकर दौलतपुर लेने पर उनको राजी किया। उन्होंने उसे खद तो लिया नहीं, अपने लडको का दिला दिया। बहुत दिनों तक सुखदेवजी के वंशजों का अधिकार इस गॉच पर रहा, परतु, बाद में, कई कारण से, वह उनके हाथ से निकल गया। इस गाँव के पास, गगा के किनारे, एक पका घाट है और कई शिवालय भी है। फुटीर भी कई बने हुए हैं, जहाँ कभी-कभी साधु-संन्यासी श्राकर ठहरा करते हैं। दौलतपुर में भी सुखदेवजी की सिद्धि की एकाद परीक्षायें हुई। उनसे मिलने और उनके दर्शन करने के लि. लोग दूर दूर से श्राते थे, यह बात प्रसिद्ध है। सुनते हा एक बार, गगातट पर, जल के विलकुल सन्निकट, कर रहे थे। इतने में एक महात्मा उनसे मिलने पाये। टेर तक वार्तालाप के अनतर उन्होंने सुखदेवजी के हा एक गुटिका दी और कहा कि यह बड़े काम की ची इसे मैंने बड़े परिश्रम से पाया है। इसमें यह गुण है कि काम की चीज है।