सुरदेव मिश्र राजा देवीसिंह ने उनको यहॉ तक प्रसन्न किया कि उन्होंने अपने घर का ठीक-ठीक पता पतला दिया। तब से राजा देवासिंद उनसे अपनी स्त्री और पुत्रों को बुलाने के लिए अनुरोध करने लगे। रगद धुरी होती है, जिस यात के पीछे पड़े रहो यद, एक न एक दिन, सिख दी हो जाती है। सुमदेवजी ने राजा देवीसिंह को प्रार्थना स्वीकार कर ली। तर यह विचार दरपेश हुशाफियापके लिए मकान कहाँ पर ग्ने । मुरगदेवी गंगा को यो गरु | सुनने ६, पया दिन, श्राप दौलतपुर के पास गगा-शान के लिए थाये। घार पर आपने गान फिया और पूजन के अनंतर वि . सदन्ननागापाठ शारम फिया। पाठ मम मधुश्रा या फिशाप पदों से चल दिये पार पाठ पारी राधारा में कोई तीन फगांग पर, दौलतपुर में, भागफा पाट प्रतम एसमय आपने कहा कि हमारे लिriram हीनदी जगदसक दोगी। यार, फिर पया था, पोमिद भापति यही पर मका यनरा दिया और नर पानी पपिता में Trarimmगुणपती पापि सपा पुमसन , पद पर Pt ग्दा समापियाम नमानी मागम grl , HITTTTTT Trer और Trainiri - सोपी रवि पदी।
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