१०० प्राचीन पंडित और कनि सुखदेवजी के चार ग्रंथ प्रसिद्ध हैं-रसाव, वृत्त-विचार' पिंगल, भंगारलता और फाजिल-अली-प्रकाश । डोडिया सेरा के राव मर्दनसिंह के लिए उन्होंने रसाव बनाया, अमेठी के राजा हिम्मतसिंह के लिए वृत्त-विचार-पिंगल बनाया; मुरारिमऊ के राजा देवीसिंह के लिए गारतता बनाई, और नन्बार पाजिल-अलीखों के लिए फाजित अली प्रकाश बनाया। रसाव में नायिका भेद है, वृत्त । विचार में वृत्तों के लक्षण और उदाहरण हैं, और फाजिल अली-प्रकाश में साहित्य के सब अंगो-काव्य के गुण-दोष लक्षण, व्यंजना और अलंकार श्रादि का वर्णन है । परतु हम यह नहीं कह सकते कि श्रृंगारलता में क्या है। हमने इस पुस्तक को देखा और न यहाँ (दौलतपुरमा इसके विपय से कोई अभिन मिला। शिवसिंह के श्राधार पर ग्रियर्सन साहब कहते है कि सुपदेवजी गौड़ में अर्जुनसिंह के बेटे गजा राजसिंह के यहाँ भी थे और वहाँ उनको कविराज की पदवी मिला थी। चे और शिवसिंह यह भी कहते है कि गौड़ में उन्हान वृत्तविचार नामक छंदोविषयक एक प्रथ बनाया, जह के छदोग्रंथों में सबसे अच्छा समझा जाता है। सुखदेवजी के दशजों को इस बात की विलकुल सपर नद चे कहते हैं कि सुसदेवजी कभी गौड़ नहीं गये ओर वृक्ष विचार पिंगल उन्होंने गौड़ में नहीं बनाया । उसे उप
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