सुखदेव मिश्र अमेठी में हिम्मतसिंह के लिए बनाया । उलके आरंभ में उन्होंने हिम्मतसिंह को श्राशीद कदा हे, यथा-- "मुखदेव सदाशिव मुदित मन हिम्मतसिंह नरिंद कह।" कविरार की पदवी मी गोद मे उद नहीं मिली। वे अपने फाजिल अली प्रकाश में लिखते है- अलदयार-सा भुजयली सुमति सूर सिरताज । जिन्ह दियो दधिराज पद यहो गरीय नियाज । समे साफ जाहिर है कि कविरार की पदवी दनको अमदयारखों ने सीधी, गोट-नरेश ने नहीं। गुम्वदेवजी बनाये हुए ग्रंथों में प्रियर्सन और शिवसिंह एरो पचार पिंगल पनलाने है। यह शायद किसी दूसरे मुपदेष । पनाया हुआ होगा। ये यह मी लिपी है कि बायजी ने अध्यात्ममका धीर दशरथगय नाम मीदो प्रया . परंतुमया में भी पालापुर- R-YEE मियामा प्रानि पर। BAP धनी शारदति गुग्गार पापा हमारे देशोRArtml मरियमनिशेष पपनाही कर पारे । पान करतो , म प धा रमपानी fruitment Taaramet. nefix nati
पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/९३
दिखावट