पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/९४

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प्राचीन पंडित और कवि

१०६ प्राचीन पडित और कवि परमपददानी सिद्धि निधि की निसानी घट-पट में समानो चहूँ चेदन चखानी है। महिषासुर मारि चंड-मुडहि विदारि रक्तचीजहि सहारि शुभ दानवै रिसानी है ।। महा मरदानी गहे कठिन कृपानी कहि सीतल सयानी तिह लोकन में जानी है। दादि सुनि लीजै, मेरे नैन करि दीजै, सुनि पाथर पसीजै तू नो श्रादि महरानी है ॥ यह कविता धुरी नहीं है । "कविराज" के वश में उत्पन्न कवि के सर्वथा अनुरूप है। श्रस्टोवर १६०८