पृष्ठ:प्रियप्रवास.djvu/१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १२ )

उन्मत्तवद् भ्रमति कूजति मन्दमन्दम्
कान्तावियोगविधुरो निशि चक्रवाक ।।

कतिपय पंक्तियाँ दोनो के गद्य की भी देखिये——

“एसा अह देवदामिहुणम् रोहिणीमि अलञ्छणम् मक्खीकदुअ अज्जउत्तम् ‘पमादेमि, अज पहुदि अज्जउत्तीजम् इथिअम् कामेदि जा अ अज्जउत्तस्स समागमप्पणइणी ताएम एपीदिवन्धेण वत्ति दव्वम् ।"

——विक्रमोर्वशी

“अह खलु सिद्धादेशजनितपरित्रासेन राजा पालकेन घोपादानीय विशसने गूढागारे बन्धनेन बद्ध तस्माच्च प्रियसुहृत्शविलकप्रमादेन बन्धनात् विमुक्तोस्मि ।"

——मृच्छकटिक

अब बतलाइये कोमल-कान्त-पदावली और सरसता किसमे अधिक है ? उक्त प्राकृत श्लोक का रचयिता कहता है कि “संस्कृत की रचना परुप और प्राकृत की सुकुमार होती है, पुरुष स्त्री में जो अन्तर है वही अन्तर इन दोनो मे है।" परन्तु दोनो भाषाओ की उर्ध्व लिखित कतिपय पंक्तियो को पढ कर आप अभिज्ञ हुए होगे कि उसके कथन में कितनी सत्यता है । कोमल-कान्त-पद कौन है? वही जिनके उच्चारण में मुख को सुविधा हो और जो श्रुतिकटु न हो । संयुक्ताक्षर और टवर्ग जिस रचना मे जितने न्यून होगे वह रचना उतनी ही कोमल और कान्त होगी, और वे जितने अधिक होगे उतनी ही अधिक वह कर्कश होगी। अब आप देखे शब्द-संख्या निर्देश से प्राकृत और संस्कृत के उद्धृत श्लोको और वाक्यो मे मे किसमे युक्ताक्षर और टवर्ग अधिक है। आप प्राकृत-श्लोक और वाक्य में ही अधिक पावेगे, और ऐसी दशा में यह सिद्ध है कि प्राकृत से संस्कृत की ही पदावली कोमल, मधुर और कान्त है।

मैं कतिपय प्राकृत वाक्यो को उनके संस्कृत अनुवाद सहित नीचे लिखता हूँ। आप इनको भी पढ कर देखिये, किसमे कोमलता और मधुरता अधिक है। और प्राकृत एव सम्कृत के उन शब्दो