पृष्ठ:प्रियप्रवास.djvu/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ५५ )

“या यह दोनों जवानें एक जवान से इस तरह निकली होगी, जिस तरह एक बाप की दो बेटियों जुदा हो गई"

“वरना सानाबदोशी के आल्म मे खुशबाश जिन्दगी बसर करते हैं, यर जगलों के चरिन्द और पहाड़ो के परिन्द ऐसी बोलियों बोलते हैं।"

——सखुनदान फारस, सफहा २, ६, २५

“वह झाड़ियाँ चमन की वह मेरा आशियाना ।

बह आग की बहारें वह सबका मिलके गाना ।।"

(सरस्वती पत्रिक)


तो वाँ जरा जरा यह करता है एला।
हवा याँ की थी जिन्दगी बख्या दौरा ।।
कि आती हो वाँ से नजर सारी दुनिया ।
जमाना की गरदिश से है किसको चारा ।।

कभी यौँ सिकन्दर कभी याँ है दारा।"

——मुसद्दसहाली


धन्य वही परमातमा जो यों तक लाया हमें।"

——सरस्वती पत्रिका भाग ८ सख्या १ पृष्ठ २५

“जाद न बरनि मनोहर जोरी । दरस लालसा सकुच न थोरी ॥"

——महात्मा तुलसीदास

“रूप मुधा इकली ही पियै पिय को न आरसी देखन देत है" '

——भारतेन्दु हरिश्चंद्र

“न स्वर्ग भी सुसद जो परतन्त्रता है"

——पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी

“सो तो कियो वायु सेवन को मानहुँ अपर प्रकारा है"

"सबै सो अहो एक तेरे निहोरे"

--पडित महावीरप्रसाद द्विवेदी

“और जो है तो है ही, किन्तु पाठक जरा इस कथन को ध्यानपूर्वक देखें"

——अभ्युदय, भाग ८ संख्या ३ पृष्ठ ३ कालम ३