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छठाँ प्रभाव


(नोट)-इसमें हीरा और बिरही के हृदय की कठोरता वर्णन की गई। १०-(निश्चल वर्णन) मूल--सती, समर भट, संतमन, धर्म, अधर्म निमित्त । जहाँ जहाँ ये बरनिये, केशव निश्चल चित्त । २३ भावार्थ---सती, भट, संतमन, तथा धर्म और अधर्म के कारणों का जहां वर्णन करना हो वहां इनके चित्तको अचल ही कहना होगा। (TTT) मूल-काय मनावच काम न लोभ न छोभ न माह महाभय जेता। केशव बाल, बयक्रम, बृद्ध विपांत्तन हूँ अति धीरज चेता हैं कलिमें करुणाबरुणालय कौन गनै कृत द्वापर त्रेता। येई हैं सूरज मंडल भेदत सूर सती अरु अरधरेता । २४ शब्दार्थ-छोभ क्रोध । जेता जीतनेवाले। बयक्रम-युवा- वस्था । बरुणालय - समुद्र । कृत = सतयुग। ऊरधरेता ब्रह्म चारी जिनका बीर्य पात न हुआ हो। भावार्थ-स्पष्ट है। सूर, सती और ऊर्ध्व रेता की अचंचल वृत्ति का वर्णन है। १९--(चंचल वर्णन) भूल-तरल तुरंग, कुरंग, धन, बानर, चलदल पान । लोभिन के मन, स्यारजन, वालक, काल विधान । २५ शब्दार्थ-तरल = चंचल । बादल पान = पीपर के पत्ते । स्थारजन - कायर पुरुष काल विधान = समय की क्रिया।