(नोट)-इसमें हीरा और बिरही के हृदय की कठोरता वर्णन
की गई।
१०-(निश्चल वर्णन)
मूल--सती, समर भट, संतमन, धर्म, अधर्म निमित्त ।
जहाँ जहाँ ये बरनिये, केशव निश्चल चित्त । २३
भावार्थ---सती, भट, संतमन, तथा धर्म और अधर्म के कारणों
का जहां वर्णन करना हो वहां इनके चित्तको अचल ही
कहना होगा।
(TTT)
मूल-काय मनावच काम न लोभ न छोभ न माह महाभय जेता।
केशव बाल, बयक्रम, बृद्ध विपांत्तन हूँ अति धीरज चेता
हैं कलिमें करुणाबरुणालय कौन गनै कृत द्वापर त्रेता।
येई हैं सूरज मंडल भेदत सूर सती अरु अरधरेता । २४
शब्दार्थ-छोभ क्रोध । जेता जीतनेवाले। बयक्रम-युवा-
वस्था । बरुणालय - समुद्र । कृत = सतयुग। ऊरधरेता ब्रह्म
चारी जिनका बीर्य पात न हुआ हो।
भावार्थ-स्पष्ट है। सूर, सती और ऊर्ध्व रेता की अचंचल
वृत्ति का वर्णन है।
१९--(चंचल वर्णन)
भूल-तरल तुरंग, कुरंग, धन, बानर, चलदल पान ।
लोभिन के मन, स्यारजन, वालक, काल विधान । २५
शब्दार्थ-तरल = चंचल । बादल पान = पीपर के पत्ते ।
स्थारजन - कायर पुरुष काल विधान = समय की क्रिया।
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छठाँ प्रभाव