पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१५७

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सातबा प्रभाव चंदन नहीं लगाया जाता, चंद्रमा की ओर नहीं साका जाता (इन कामों से उसकी विरह पीर अधिक बढ़ती है)। प्रति घड़ी शरीर की रचना घटती जाती है ( अंग दुबले होले जासे हैं) उसके चमकीले मुख की कांति प्रति क्षण कम होती जाती है और सुख की मात्रा भी कम होती जाती है। विरह. दाह घटाने को यदि उसे तुषार कण खिलाए जायें तो उसे पसीना आता है (और अधिक दाहक होते हैं। (शिशिर वर्णन) मूल-शिशिर सरस मन बरनिये, केशव राजा रंक । नाचत गावत रैने दिन, खेलत हँसत निशंक ।। ३७ ॥ भावार्थ-शिशिर में राजा और रंक के मनों का सरस होना, नाचना, गाना, हँसना खेलना वर्णन करना चाहिये (जैसा अाजकल फागुन में होता है) (यथा) मूल-सरस असम सर सरसिज लोचनि, वि-. लोकि लोक लीक लाज लोपिबे को आगरी। ललित लता सुवाहु जानि जून ज्वान बाल, बिटप उरनि लागै उमॅगि उनागरी । पल्लव अधर मधु भधुपन पीवतही, रचित रुचिर पिक रुत सुख सागरी । इति विधि सदागति बास बिगलित गात, शिशिर की शोभा किधौं बारनारि नागरी ॥३॥