पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१६९

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आठवाँ प्रभाव ( मंत्री वर्णन) मूल - राजनीति रत, राजरत, शुचि, सर्वज्ञ, कुलीन । क्षमी, शर, यश, शील युत मंत्री मंत्र प्रवीन ॥१७॥ शब्दार्थराजरतः 'राजभक्त । शुचि- पवित्र मन । क्षमी= क्षमतावान । यश शीलयुत यशश्रुत और शीलयुत ( यशी हो और शीलवान हो)। केशव कैसहुँ बारिधि बाँधि कहा भयो रीछन सों चिति छाई । सूरज को सुत, बाले को बालक, को नल नील, कही हम ठाई। को हमुमत कितेक बली, यमहू पहँ जोर लई नहिं जाई । भूषन भूषन, दूषन दूधन, लंक विभीषन के मत पाई ॥१८॥ शब्दार्थ-सूरज को सुत-सुधीर । बालिको बालक = अंगद । कही हमठाई को हमने सिखाया बही उन्होंने किया (मंत्र देने की योग्यता उनमें नहीं है) यम..... जाई ओर करके यमराज भी नहीं ले सकते थे। भूषन भूषन = अच्छी बात को मंडन करने वाला ( यह शब्द विभीषण का विशेषण है)। दूषन दूषन = जुरी बात को खंडन करने वाला ( यह भी विभीषण का विशेषण है ) मत = मंत्र, सलाह। (नोट)-विभीषण को प्रशंसा में श्री राम जी का बचन भरत प्रति। भावार्थ-तीन चरणों का अर्थ बहुत सरल है। चौथे चरण का यह भाव है कि लंका हम विभीषण के मंत्र से ले सके, जो विभीषण भली बात के मंडन करने वाले और बुरी बात