पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आउवा प्रभाव में भय है ही), फिर जब नायक साहस से हाथ पकड़ ही लेता है, तब शरीर स्वेद तथा कंप भाव धारण करता है। पुनः बाजीकरण से पुष्ट नायक नाहीं नाहीं करते रहने पर भी पैरों को उठाकर अपने कंधों पर रखता है, तब अनेक प्रकार के शब्द ( नूपुरादि के अथवा सीत्कार के) होने लगते हैं, दांतों से अधर खंडन होता है, नायक के हाथ निर्दय हो जाते हैं और ज़ोर ज़ोर से वह कुच मर्दन करता है, और अपनी शक्ति भर प्रिया को मान रक्षा करता है (प्रशंसा करता जाता है जिससे वह अप्रसन्न न हो) और स्त्री के कुच खूब नख प्रहार सहते हैं। उस समय बजने वाले सुन्दर भूषण (किंकिणी और नूपुरादि ) और आलिंगन में बाधक हार हमेलादि सब बुरे लगते हैं, हे सखी सुरति की यह रीति उत्तम होती है। w (समर पक्ष का अर्थ) शब्दार्थ-मोह- कायर। कंपन गहत हैं -कांपते नहीं। प्राण प्रिय वाजी कृत-प्यारे प्राणों की बाजी लगती है। बारन-हाथी । पदाति= पैदल । क्रम चलते हैं। द्विज पक्षी (गीधादि)। दानहि लहत हैं-मांसादि का दान पाते हैं (अथवा ) द्विज दानहि लहत हैं-रण को जाते समय बीर लोग ब्राह्मणों को निज भूषणादि दान कर देते हैं । कलित कृपान कर हाथों में तलवार शोभा देती हैं। सकति सुमान धान = अपने मान की रक्षा करने वाली शक्ति (वरछी)। सजि सजि अच्छी तरह तैयार हो हो कर। करज प्रहार शत्रु के हाथ से उत्पन्न प्रहार । भूषण सुदेश = अपना देश