पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२००

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नना प्रभाव (यथा) मूल-सोभत सुबास हास सुधा सो सुवायो विधि, विष को निवास जैसो तसो मोहकारी है। केशोदास पावन परम हंस गति तेरी, पर हीय हरन प्रकृति होने पारी है। वारक बिलोकि बलधीर से बलीन कह, करत दरहिं बश, ऐसी बैस वारी हैं। एरी मेरी सखी तेरी कैसे कै प्रतीत कीजै, कृशनानुसारी दृग करणानुसारी हैं ॥ २० ॥ शब्दाथ-सुवास सुधित। विष को निवास- धतूरा इत्यादि विषैले पदार्थ । सोहकारीमूछित करने वाला । पालन परम हंस पति-(१) पवित्र पर हसौ की ली दशा (२) पैरों में सुन्दर हलकी सी चाल है। प्रकृति - सुनाव । बलजीर - Wor | बरहि बल ही से। बारी ललकपन ही में। कृशनानुसारी = कृष्ण के अनुशाली करवानुसारी = (१) कानों तक फैले हुए अर्थात् बहुत बड़े (२) कर्ण के अनुगामी । (नाट) कृष्ण और कर्ण विरोधी थे, क्योंकि कृष्या अर्जुन के सहायक थे और कर्ण अर्जुन का शत्रु था । (विशेष)-इस कवित्त के पहले और तीसरे चरण में विरोध अलंकार है, दूसरे और चौथे में विरोधाभास अलंकार है। पर विरोधाभासको केशव ने विरोध ही के अन्तर्गत माना है। भावार्थ हे सखी! तेरा हास्य धित है: रविधि ने उसे सुधा से बनाया है (अर्थात देशा सुगंधित और स्वच्छ मधुर