पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१९९

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प्रिया-प्रकाश साधन साधि अगाध सबै बुधि सोधि जो दूत अमूतन में ही ॥ ता दिन तें दिन मान दुहून के केशव आवत बात कहे ही। पीछे प्रकाश प्रकाशै शशी, बहि प्रेम समुद्र रहे पहिल हो ॥१८ शब्दार्थ-अगाध अति कठिन (साधन का विशेषण है। अयूत दूत अत्यंत अलौकिक चतुरता युक्त दूत । ही थी । मान-अरमान का बढ़ना, अभिलाष की प्रबलता। भावार्थ-जिस दिन से सखी ने राधिका को, कठिन साधन साध कर, और अलौकिक दूतों की बुद्धिमानी से, कृष्ण से मिलाया था, उसी दिन से प्रति दिन दोनों की अभिलाषाएं ऐसी बढी चढ़ी हैं कि यह कहते ही बनता है कि आकाश में चंद्रमा पीछे निकलता है, पर उनके हृदय का प्रेम समुद्र पहिले ही से उमड़ा रहता है। (विशेष)-"अगोच साधन साँध कर, अलौकिक दूतत्व से" यह कथन सभाव हेतु है, "आकाश में चंद्रमा पीछे निकलता है प्रेम समुद्र पहले बढ़ता है" यह कथन अभाव हेतु है। ४- विरोधा लंकार वर्णन) मूल केशवदास विरोध मय, शचियत बचन बिचारि । तासों कहत बिरोध सब. कविं कुल सुबुधि सुधारि ॥१६ शब्दार्थ--रचियत पचन विचारि-विचार पूर्वक रचना करने से यह अलंकार कहते बनता है। असावधानी करने से विभाधना या विषम से मिलजायगा, अतः इसके कथन में बड़ी सावधानी चाहिये। सुबुधि सुधारि बुद्धि को सुधार कर यह अलंकार कहते हैं।