पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२४२

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प्रिया-प्रकाश गिरि - मेरु, हिमालय, उदयाचल, विंध्या, लोकालोक, गं. मादन, कैलास। ताल चार ताल मेरु पर हैं, मानसर, विध्यसर, पंपासर । तह- स्वर्ग के पांच तह (कल्पवृक्षावि, अक्षयवट, कैलासवट। अन्न अरहर, गेहूं, धान, यव, चना, मूंग, माष । ईति = अतिवृष्टि, अनावृष्टि, क्षक, शुक,शलभ, स्वचक्र,परचक्र । सातकरतार-प्रकृति, सत, रज, तम, ब्रह्मा, विष्णु, शिव । मूल-सात छंद, सातो पुरी, सात त्वचा सुख सात । चिरंजीच, ऋषि, सात नर, सप्तमातृका. धात ।। १८ ।। शब्दार्थ-साल छंद = ( वेद के ) गायत्री, उणिक, अनुष्टुप, बृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती । पुरी= अयोध्या, मथुरा, माश, काशी, कांची, असतिका, द्वारका। त्वचा शरीर में सात त्वचा मानी जाती है (वैद्यक)। सुख = स्नान, पान, परिधान; ज्ञान, गान, शोभा, संयोग ( देखो प्रभाव ८, छंद नं०४३) चिरंजीव अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम । ऋषि = ( सप्तर्षि ) कश्यप, अनि, जमदग्नि, विश्वामित्र, वशिष्ठ, भरद्वाज, गौतम । सात नर = (मानव जाति) ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य, शूद, संकर, अंत्यज, यवन । मातृकाप्राहमी माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी, चामुण्डा । धात रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मजा, वीर्य। (विशेष)-अशिशिखा, गोत्र, और राजअंग भी सात ही माने जाते हैं। अग्निशिखाओं के सातो नाम हमें ज्ञात नहीं। 'गोत्र' वही हैं जो सप्तर्षि हैं । राज अंगरानी, युवराज, मंत्री, मित्र, देश, कोष, सेना, ये सात अंग हैं।