पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रिया-प्रकाश मुदित पयोधर दामिनी सी नाथ साथ, काम की सी सेना काम सेना पनि आई है ॥३५॥ व्याख्या)-इस कवित्त में कामसेना नानी राजा रामसिंह की वेश्या की उपमा कामदेव की सेना से दी गई है। शब्द ऐसे रख हैं कि काम की सेना और कामसेना ( वेश्या ) दोनों पक्षों में बिना अर्थ धदले ही लग सकते हैं । यथा :--- काम की सेना मे सुकेसी, मनुधोत्रा, रति, और उरबसी होती हैं, यह कान सेना धेश्या भी सुकेशी, मंगुघोगा और रति क्रीडा प्रबोगता से उर में बसने वाली है। उस सेना की मी रेत सोहावनी होती है, इस वेश्या की भी सुझावनी सूरत है। यह सेना भी मधुर ध्वनि, तथा सुगंध और राग रंग युक्त होती है, यह वेश्या भी फखरव, सुगंध और राग रंग युक्त है। काम की खेला का यदन कमल है जिसपर भेवर मुंजारते हैं, इस वेश्या का भी भुख कमल है जिसपर भंघर मैंडराते हैं। उस सेना में भी बैंक भी धनु का और कटाक्ष पाण का काम करते हैं, इस लेश्या में भी वैसीही बात है। काम सेना में भी उन्नत कुच और दामिनि वर्ण बाली नायिका होती है, यह वेश्या भी पीन परोधरा और दामिमि वर्ग की अपने नाथ ( नायक राजारामसिंह) के साथ है। अतः यह काम सेना वेश्या ठीक कामसेना ही है। (सूचना)--बिचार पूर्वक देखने से स्पष्ट झात होता है कि जिस प्रकार छंद नं ३१, ३२, ३३ में प्रत्येक पक्ष के अर्थ में शद्धार्थ मिन्न होते गये हैं वैसा इसमें नहीं है। अतः यह श्रमिन्नपद श्लेष है।