पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२७४

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ग्यारहवा प्रभाव रखा है। अर्वाचीन श्राचार्य इसे 'परिसंख्या अलंकार कहते हैं। ५-(बिरोधी श्लेष) मूल-कृष्ण हरेहरये हरै संपत्ति, शंभु बिपति यहै अधिकाई । जातक काम अकामन के हितु, घातक काम सकाम सहाई ॥ छाती में लच्छि दुरावत वेतो, फिरावत ये सब के सँग धाई। यद्यपि केशव एक तऊ हरि ते हर सेवक को सत भाई ॥४४॥ शब्दार्थहरे हरये = धीरे धीरे । जातक काम काम को पैदा करने वाले । अकामन के हितुनिष्काम् भक्तों के हितू हैं। घातक काम- काम को मारने वाले । सकाम सहाई-सकाम सको के सहायक हैं। लच्छि = लक्ष्मी लेबक को संतभाई = सेवक के साथ अधिक सद्भाव रखते हैं। भावाधं-(हरि और हर दोनों पक्रही हैं. हाल ही है, पर हरि की अपेक्षा हर मै ये अधिकताब ह कि हरि (इष्ण ) तो धीरे धीरे अपने दासों की संपत्ति हरले हैं और हर (शिवजी) विपत्ति हो हैं। हरि काम के पिता और हामी भक्तों के हितू हैं, शिवजी काम के घातक और अकम दासों के सहायक है । वे (हरि) लक्ष्मी को छाती मैं लुकाते हैं, (अतिग्धार से छाती में इनाये रखते हैं जैसे चंदरी अपने बच्चों को छाती से लगाये रहती है ) अर्थात् थी वत्सलांछन हैं, और ये ( शिव । अपने सर लो के संग लक्ष्मी को फिराते हैं (दासों को अन्य साली प्रदान करते हैं)। यद्यपि हरि और हर एकही है. सोशीदार की अपेक्षा भर में दासों की ओर अधिक सद्भाय है।