पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२८४

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ग्यारहवा प्रभाव शब्दार्थ-बलित = सहित। अबेर बरुण । अविध करौं:- अस्तित्व मिटा दूं। सूरज-सूरपुत्र (सुग्रीव )। असुर = (श्र+सुर) देवों से रहित । बल = निजबल से। (विशेष)-यह राम जी का कथन उस समय का जय उनसे कहा गया कि लक्ष्मण जी ब्रह्मशक्ति से घायल हुए हैं और सूर्योदय होते ही सर जायेंगे। राम को देवताओं पर क्रोध आगया कि इन्हीं के फायदे के लिये हम कष्ट उठा रहे हैं और यही लोग अपने बरदानों द्वारा हमारा अनिष्ट करने को तैयार हैं। भावार्थ-बारहो श्रादित्यों को गायब करके चौदहो जमों और श्राठो बसुओं को नष्ट करदूंगा, रुद्रों को समुद्र में डुबाकर, गंधों को बलिपशु बनाकर काट डालूंगा, बरुण समेत कुबेर और इन्द्र को पकड़ कर राजा बलि के हवाले कर दूंगा। विद्याधरों का अस्तित्व ही मिटाढुंगा, सब सिद्धों को सिद्धि रहित कर दूंगा । अदिति को लेकर दिति की दासी बना डालूंगा । वायु, अग्नि और जल मिट जायेंगे। हे सुग्रीव ! यदि सूरज निकले तो मैं अपने बल से समस्त संसार को देव विहीन कर डालूंगा। ( व्याख्या)-इस कथन से तथा समय के विचार से स्पष्ट है कि रामजी को 'कोड' हो पाया है, अतः 'कोप' स्थाई होने के कारण रौद्र रस है। करुणा रसवत) मुल-दूरते दुंदुभि दीह सुनी न गुनी जन पुंज की गुंजन गाढ़ी। तारन तूर न ताल बसें बरम्हावत भाट न गावत ढाढ़ी । बिन न मंगल मंत्र पढ़े अरु देखी न बारवधू ढिग ठाटी । केशव तात के गात, उताराते प्रारति, मात्रा, आरति बाड़ी ५७॥