पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३१२

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प्रिया-प्रकाश (व्याख्या ) पहले तीन चरणों में दूसरे के गुण से दूसरे को गुण वर्णन है-अर्थात् पुन हुआ, दशरथ के बधाई बजी देवताओं के घर और उन्हीं ने आनंदित होकर फूल बरसाये, पेड़ फूले फले, नदियां आनंदित होकर छीर की धारा बहाते लगी ( अर्थात् पुत्र हुअा कौशल्या के, और दूध भर पाया नदियों के स्तनों में), वायु सुगंधित होगई। चौथे चरण में दूसरे के गुण से दूसरे को दोष वर्णन है। दान करते हैं लोग और छाती फटती है दरिद्र की। (नोट)--उदाहरणों के अनुसार इस अलंकार को हाल के आचार्य असंगति अलंकार मानेगे । (पुनः) मूल-होय हँसी औरनि सुने, यह अचरज की बात । कान्ह चढ़ावत चंदनहि, मेरो हियो सिरात ॥ १२ ॥ भावार्थ-यह अचरज की बात सुनकर अन्य लोगों को हंसी श्रावेगी कि चंदन तो लगाते हैं श्री कृष्ण जी और ठंढा होता है मेरा कलेजा। भूल-दिये सोनारन दाम, शबर को सानो हो । दुख पायो पतिराम, प्रोहित केशव मिश्र सौं ॥ १३ ॥ भावार्थ-पतिराम सोनार ने तो रनिवाल का सोना चीरावा और अन्य सब सोनारों को (दण्डरूप में ) उसका मोल देना पडा । राजा इन्द्रजीत का बड़ा हित (प्रीहित=+ हित ) है तो केशव मिश्र पर, पर दुखी होता है पतिराम सोनार [ कि मुझपर इतनी कृपा क्यों नहीं है ]