पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३२८

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३२२ प्रिया-प्रकाश (व्याख्या)-भावार्थ सरल हो है। जब ऋण मनाने मनाते शक गये और उन्हें यह जान पड़ा कि अब मान मोचन.न होगा ( कार्य सिद्धि न होगी ) तब दैव योग से घटा घहरा उठी और डरकर राधिका कृष्ण से लिपट गई (कार्य सिद्धि हो गई। (नोट)-इसे हाल के प्राचार्य 'समाधि अलंकार मानगे। (पुनः) मुल-सातहु दीपन के अवनी पति हारि रहे जिय में जब ज्ञाने। बीस चिसे व्रत भंग भयो सु कहौ अब केशव को धनु ताने । शोक की आगि लगी परिपूरन आय गये धनश्याम बिहाने । जानकी के जनकादिक के सब फूलि उठे तरु पुन्य पुराने ||३|| शब्दार्थ-बीस बिसे= निश्चय ही, पूर्ण रीति से । (व्याख्या)-किसी राजा से धनुष न उठा। राजा जनक की प्रतिज्ञा भंग ही होने को धी कि दैव योग से उसी दिन सरे श्रीराम जी जनकपुर में पहुंचे। इसमें भी पहले छंद का तरह पूर्ण निराशा होने पर अनायास राम जी का पहुचना हुश्रा जिससे सब की श्राशा पूर्ण हुई । यही समाहित अलंकार है। २४-(मुसिद्धालंकार) मुल-साधि साधि औरै मरें, औरै भोगें सिद्धि । सासों कहत सुसिद्धि सब, जिनके बुद्धिसमृद्धि ॥ ४॥ भावार्थ-साधन और कोई करे, सिद्धि का फल और कोई मोने।