पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३६४

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चौदहवाँ प्रभाव सदा एक रूप रस से रहनेवाला, जिसकी बड़ी प्रशंसा सुनती हूं, तेरा सा मुख तेरा ही है। { नोट)-मेरी समझ में तो यह ठीक 'अनन्बय अलंकार है। १२-( उत्प्रेक्षितोपमा ) भूल-केशव दीपति एकही, होय अनेकन माह । उत्प्रेक्षित उपभा साई, कहैं कबिन के नाह ॥२७॥ भावार्थ-उपमेय के जिस गुण का वर्णन करना मंजूर हो, बह गुण अनेकों में पाया जाय । (यथा) भूल-न्यारो ही गुमान मन मीननि के मानियत, जानियत सवही सु कैसे न जनाइये। पंचवान बाननि के आन आन भांति गर्व, बाड्यौ परिमान बिनु कैसै सो बताइये ।। केशोदास सबिलास गीत रंग रंगनि, कुरंग अगनानि के प्रांगनाने गाइये । सीता जी की नयन-निकाई हमही में है सु, झूठी है नलिन खंजरीट हू में पाइये ॥२८॥ शब्दार्थ-गुमान = गई। पंचवान- काम । परिमान बिनु चे प्रमाण, बहुत अधिक। गंतप्रशंसा । रंगरंगनि अनेक तरह के ! कुरंगअंगना मृगी। अगिननि-प्रति आंगन में, हर एक घर में । नयन निकाई नेन शोभा। नलिन कमल । खंजरीद खंजन।