पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३८९

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- पंद्रहवाँ प्रभाव घूमती है। रंभा बनी = रंभा सी बनी उनी। सुर-तरंगिनी सातो सुरों की नदी (जिससे सुरों की तरंगे निकलती हैं)। किंनरी- सारंगी। सुरत-(सूरत) रूप। रंगिनी कर रंजित करनेवाली, अनुरक करनेवाली। किंनरी किधर कन्या। (विशेष)-कोई दूती किन्नरी रूप धारिणी राधिका से कृष्ण को मिलाना चाहती है अतः कृष्ण से कहती है । भावार्थ-हे कृष्ण! आज मैने उस बादली बन में जिसमें बहुत से पारिजात के वृक्ष हैं, एक ( अति सुंदर ) अपनी सूरत पर अनुनक करने वाली किन्नर कन्या देखी है, वह हाशा में एक अति सुरीली सारंगी लिये हुये अपने ही गान वाद्य के शब्द में मस्त रंभा सी बनी घूमती है (तुम्हें भी देखना हो तो बहाँ आकर देख लो) (पुनः) मूल-श्री कँठ उर बासुकि लसत, सर्व मंगलामार । श्री कॅठ उर वासुकि लसत, सर्व मंगलामार ॥ ३३ ॥ शब्दार्थ-श्री कंठ = शिव वासुकि नाग । सर्वमंगलामार = ( सर्व मंगल+ अमार) समस्त मंगल रूप और काम रहित अर्थात् आपादमस्तक भंगलमय हैं और अकाम हैं; किसी से कुछ चाहले नहीं। श्रीफट = जिनका कंठ शोभा युक्त है। वास्तुकि: = माला। सर्वमंगला पार्वती। मा लक्ष्मी र:अधि। भावार्थ--(इसमें शिव पार्वतो का ध्यान वर्णित है ) श्रीशिव कैसे हैं कि उनके हृदय पर वासुकी नाग शोभित है, मंगल- मूर्ति और प्रकार हैं। और सर्जमंगला माली) कैसी हैं