पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३९०

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प्रिया-प्रकाश कि उनका कंठ शोभा युक्त है, हृदय पर सुन्दर माला सोहती है और लक्ष्मी रूपा तथा अग्निरूपा हैं (अर्थात् भक्तों को लक्ष्मी रूपा पालन करने वाली और पापी दुष्टों को अग्निरूपा जलाने वाली हैं, अथवा सेबक के अनिष्टो को जलाने के हेतु अग्निरूप हैं) (पुनः) मूल-दूषन दूषन के यश भूषन भूषन अंगनि केशव सोहै। ज्ञान संपूरन पूरन कै परि पूरन भावनि पूरन जोहै ।। श्री परमानंद की परमा--पर मानद की परमा कहि को है। प.तुर सी तुरसी मति को, अवदातुरसी तुरसी पति मोहै ॥३४॥ शब्दार्थ-दूपन दूषन = दूषण राक्षस को नष्ट करने वाले (श्री- राम जी)। शभूषनचिन्ह । (इस शब्द का अन्वय 'अंगनि सो है' ले करो) पूरन = धारा, प्रवाह । पूरन = सर्व- प्यात । जो है = देखता है। परमानंद = ईश्वर परमा= शोभा। पर तत्पर ।, लगा हुआ। मा-नंद = लक्ष्मी का आनंद ( धन वैभव का आनंद)। परमा = बहुतायत, अधिकता। पातुर सी = ( पातुर श्री ) बेश्याओं की शोभा । तुरसी- (फा तुर्शी) खटाई। अपदात रस =उज्वल रस ( शांत रस )। अषदातु रसी = शान्त रस से निमन (शान्तरल पूर्ण) । तुरली पति (तुलसी पति ) विष्णु । भावार्थ-( इसमें सच्चे भक्तों की प्रशंसा का वर्णन है ) जो भक्त अपने अंगों पर दूषणरिषु (श्रीराम जी के यशोभूषण ( शंख चक्रादि के चिन्ह) भूषणवत् धारे सोहता है, जो संपूर्ण ज्ञान की धाराओं से परिपूर्ण भावनाओं के द्वारा ईश्वर को संसार च्यापी देखता है, और जो ईश्वर की शोभा छटा