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प्रिया-प्रकाश


१-(पंथ विरोधी 'अंध' नामक दोष का उदाहरण) मल सया- कोमल कंज से फूलि रहे कुच देखत ही पति चंद बिमोहै । बानर से चल चारु विलोचन कोये रचे रुचि रोचन कोहै ।। माखन सो मधुरो अधरामृत केशव को उपमा कहुँ टोहै । ठाढी है भामिनि दामिनिसी मृगभामिनि सी गजगामिनि सोहै।॥६॥ भावार्थ -सरल ही है। (शिवेचन .... कवि प्रथानुसार 'कुच' को कठोर और संपुटित कमलकलीवत् कहा जाता है। यहां प्रस्फुटिन कम- ल और कोमल काहना पं. बिरोध है। कमल के संबंध में 'पति' को बन्द कहना पंथ विरोध है, सूर कहना उचित था। 'लोचन'चंल कहे जाने पर बानर की उपमा पंच विरोधी है। अांख के कोचों का लाल होना कहा जाता है पर मंचन (रोरी । सम नहीं। अधर को माखन ( श्वेत) की उपमा पंच विरोध है, बिंबा सम कहना चाहिये था । म भानिनि (गी) सम खड़ी है, यह कहना भी पंथ विरोध है। ऐसे ही दोषों को 'अंध' दोष कहते हैं। अब इस लिये कि इससे प्रगट होता है कि कहनेवाले ने कविपंथ को नही देखा, जैसे अंधा सुपंथ को नहीं देख सकता। २-(शब्द विरोधी अधिर दोष का उदाहरण ) मूल-(सवैया)- सिद्ध सिरोमणि शकर सृष्टि संहारत साधु समूह भरी है । सुन्दर मूरति आतम-भूत की जारि धरीक में छार करी है।