पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४३०

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सोरहवा प्रभाव से न सुनी जस मीर भरी, घर धीर ऽब रीति सु कौन बहै। मैन मनी गुरु बाल चलै सुभ, सो वन में सर सील लसै ॥६॥ शब्दार्थ-सैन = सोना निद्रालेना । सर- (शर) बाण । रेख = तुच्छ । सुदेस = सुंदर । सुक्षेस-सुन्दर भेस । नै= (नय) नीति । क्री करी, करली है, ग्रहण की है । तचि जी- जी में जल कर । तरुनी रुचि-खी की छवि ! चीर = बस्न । निमि= नीब। कालफल =इंद्रायन । जस जैसी। भीर भरी = भीड़ एकत्र हुई थी। रीति =कुलकानि । बहै = बहन कर, निवाहै। मैनमनी = ( मयन मणि) काममणि, चिंता मणि समान ( कामना प्रद)। गुरु चाल चलै = गुरु जनों की चाल पर चलता है ( भलेमानसों की चाल चलने वाला है)। सर ताल । सीव-(सीम हद ) सट । सरसीव ताल के तट पर । लस = शोभा दे रहा है ( बैठा है) (नोट)-नायिका रूठ गई है, सखी उसका मान मोचन करके कृष्ण से मिलने का अनुरोध करती है और मिलने का स्थान बताती है। भावार्थ-(तेरे वियोग में ) माधव को निद्रा नहीं पाती, और अन्य सब सुन्दरी तथा अच्छे भेस वाली स्त्रियाँ उसे तुच्छ जंचती हैं और बाण सम लगती हैं। तेरे ब्रियोग से जी में जल कर उन्होंने नवीन नीति ग्रहण की है कि अन्य स्त्रियों की छबि और बस्त्र उनको नींब और इंद्रायन समान कटु लगते हैं। श्रन्य स्त्रियों की जैसी भीड़ उनके पास एकत्र रहती है वह बात ( खबर ) क्या तू ने नहीं सुनी। ऐसी सुन्दर स्त्रियाँ उनके पास एकत्र रहती हैं कि कौन बायक ऐसा होगा कि धीर धर कर कुल कानि का निर्वाह कर सके