यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
छठां प्रभाव
(वर्ण्यालंकार वर्णन)
वर्ण्य=जिनकी आकृति वा गुण लेकर कोई उक्ति कही जाय।
मूल-संपूरण, आवर्त, पुनि कुटिल, त्रिकोण सुवृत्त।
तीक्षण, गुरु, कोमल, कठिन, निश्चल, चंचल चित्त॥१॥
सुखद, दुखद, अरु मंदगति, सीतल, तप्त, सुरूप।
क्रूरस्वर, सुस्वर, मधुर, अबल, बलिष्ठ अनूप॥२॥
सत्य, झूठ, मंडल बरनि, अगति, सदागति, दानि।
अष्टविंश विधि मैं कहे, वर्ण्य अनेक बखानि॥३॥
(नोट)-'वर्ण्य' विषय इन अट्ठाईस के अलावा और भी हैं।
१-(संपूर्ण वर्णन)
मूल-इतने संपूरण सदा बरने केशव दास
अंबुज, आनन, आरसी, संतत प्रेम, प्रकास॥४॥
भावार्थ-कमल, मुख, आईना, प्रेम और प्रकाश को संपूर्ण (अखंडित) मान कर ही कविगण उक्ति कहते हैं। जैसे नीचे लिखे छंद में प्रकाश, कमल और मुख का वर्णन संपूर्ण मान कर ही किया गया है।
मूल-हरि कर मंडन, सकल दुख खंडन,
मुकुर महिमंडल के कहत अखंड मति।