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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१४०

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भले बनी ठनी प्रिया सुश्याम सग राजही।
प्रभा निहारि हारि २ काम बाम लाजही॥

भुजंगप्रयात छन्द

भले भाल पै बिन्द सिन्दूर सोहै, लखे जाहिके कोटि कन्दर्प मोहै।
घन श्याम से ह्या घनश्याम राजै, इतै दामिनी हूँ तिया देखि लाजै॥

सर्वया छन्द

छहरै मुख पै घनश्याम से केश इतै सिर मोर पखा फहरै।
उत गोल कपोलन पै अति लोल अमोल लली मुक्ता थहरै।
इहि भॉति सो बद्रीनारायन जू दोऊ देखि रहे जमुना लहरै।
निति ऐसे सनेह सो राधिका श्याम हमारे हिये मै सदा विहरै।

दूसरी सवैया

इत सोहत मोरन की कॅलगी कटि के तट पीत पटा फहरै।
उत ओढनी बैजनी है सिर पै मुख पै नथ के मुक्ता थहरै।
बनकुज मै बद्रीनारायण जू कर मेलि दोऊ करतै टहरै।
निति ऐसे सनेह सो राधिका श्याम हमारे हिये मे सदा बिहरै॥

तीसरी सवैया

हरि गावते तान रसाल खरे, वै नचावती नैननि चित्त हरै।
इत ई मुरली धुनि पूरि रहै-कहो ताकि कहाँ उपमा ठहरै॥
इत भौह सो बद्रीनारायनजू वे बताय के देत कडी कहरै।
नित ऐसे सनेह सो राधिका श्याम हमारे हिये मे सदा विहरै।

सोरठा छन्द

कालिन्दी के तीर-यहि विधि लीला नवल नव।
राधा श्री बलवीर-वृन्दावन मै करत निति।