पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१५०

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राजराजेश्वरी जयति

पं० बद्री नारायण कृत

दोहा

जै जै भारत भूमि जै भारतवासी लोग।
जयति राजराजेश्वरी विक्टोरिया असोग॥१॥
अति मंगल मय राजराजेश्वरि की अभिषेक।
मंगल श्री मंगल सुयश मंगल न्याय विवेक॥२॥
मंगल मै यह राज्य पुनि मंगल मय यह देस।
मंगल सम्वत यह न जहं रहो दुःख को लेस॥३॥
मंगल मै यह मास पुनि मंगल मै यह पच्छ।
मंगल दिन अरू जाम पुनि मंगल घटिका स्वच्छ॥४॥
मंगल मै छन विपल पल मंगल परम ललाम।
भो अभिषेक सुराज राजेश्वरि को जिहि जाम॥५॥
बहुत दिनन सों भूमि यह भारत ही अति दीन।
निजपति विपति वियोग सों सदा रहो छबि छीन॥६॥
जो कछ या कहँ नप मिले अधम कुटिल खल नीच।
दुष्ट पतिन मिलि औरहू रही शोक निधि वीच॥७॥
रामचन्द्र, रघु, बलि तथा दशरथ से भूपाल।
भोज, युधिष्ठर, विक्रमादित्त, हरिश्चन्द्र कृपाल॥८॥
जे नाशक खल करम नित नवल प्रकाशक धर्म।
प्रजा पालि करि न्याय शुचि रत सुनीत शुभकर्म॥९॥
जिन पति पृथ्वीपतिन सों यह पृथिवी निःसंक।
नारी इव पगि मोद सों रहति लपटि पिय अंक॥१०॥