पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१५१

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धन अम्बर सो सजित नित रहत हती यह बाम।
नाना नगर सिंगार सों भले भवन अभिराम॥११॥
पूरव कथित पतीन सों पै जब भयो वियोग।
जासु दुःख मै लहि कुपति औरहु बाढेहु सोग॥१२॥
नादिर अरु चंगेज से मिले जबै पति यांहि।
तिमिरलिंग आदिक जिते डार्यो भल बिधि दाहि॥१३॥
अवरंग अरु महमूद से मिले जबै खल नीच।
दुखदानी छविहत अशुचि जिमि मयंक में कीच॥१४॥
जे सपनेहु दुःख तजि दियो न सुख को लेस।
या अबला अवला अधिक कियो दयो अति क्लेश॥१५॥
याके पुत्रन को सदा हति बोई गुनि काम।
यूंकि चूंकि भारत नरन कियो अमित इसलाम॥१६॥
दिल्ली, मथुरा, कन्नउज से अंगन करि करि भंग।
आरज रुधिर प्रवाह सों करि करि रंगा रंग॥१७॥
अति असंख्य अदभुत सुगृह, देवालय. बहु तोरि।
पूरब कथित अभूषननि डार्यो यांसो छोरि॥१८॥
धन अम्बर हरि के कियो या ललना को नंग।
गुनिजन पंडित केश सिर नोचि कियो छवि भंग॥१९॥
राजसुतानि अनेक नित डारि महल निज बीच।
बहु पुस्तक या देस की फूंकि जलायो नीच॥२०॥
तोरि देव प्रतिमा अमित पुनि गोमास मिलाय।
भरि तोबरन पुजारिनहि ग्रीवामहं लटकाय॥२१॥
नगर घुमायो तिन प्रथम पुनि हरि लियो परान।
सुरभीरक्त पियाय वहु करि दीनों मुसलमान॥२२॥
या विधि जब उत्पात बहु कियो यवन नरनाह।
दुख सागर बाढ़त भयो भारत परजा मांह॥२३॥
जब करुणानिधि आपु हरि ह्वै कै महा अधीर।
नासि यवन राजहि हरयो प्रजा दुसह दुख पीर॥२४॥