कलम की कारोगरी
कलम करी कारीगरी, कारीगर के हेतु
कुटिलन के चोखी छुरी, कारीगर धर देत।
श्री बदरी नारायण शर्मा कृत
आनन्द कादम्बिनी की पूर्ति
मिरजापूर
पंडित गोपीनाथ पाठक ने बनारस लाइट यन्त्रालय में मुद्रित किया।
सम्वत् १९३८ विक्रमीय
कलम की कारीगरी के आविर्भाव की कवितायें पुस्तकाकार छपाकर प्रेमघन जी ने साहित्य प्रेमियों को वितरित किया था--प्रथम संस्करण में ये प्राप्त न होने के कारण नहीं छापी जा सकी थीं।
मङ्गलाचरण
लिखे जो उस रुखे ताबां को आबो ताब कलम।
बनाये सफहये काग़ज़ को आफ़ताब क़लम॥
खेआले जुल्फ में मानिन्दे शाखे सुम्बलेतर।
रेआजे फिक्र में खाता है पेचो ताब कलम।
अगर लिखू सिफते चश्मे मस्त साकी मैं।
बनाये दायरो को सागरे शराब कलम॥
सिफ़त जो उस दुरे दन्दां की गर बयान करे।
ज़बान धोने को मांगे गोहर की आव क़लम॥
लिखूँ जो शरह में उस्के कलामें रंगी की।
करे मदाद को रंगीनी से शहाब क़लम॥
सिफ़त लिखू मैं अगर उस्के रुप रौशनकी।
तेरे हाथ में हो शमय माहताब क़लम॥