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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१५७

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१२८ लिखा है वस्फ जो उस रुये तीर क़ामत का। बना है मिसरये शमशाद का जबाव कलम ॥ जो शरह दीदये तरसे सहाब है कागज़। गिराये विजली लिखे दिलका इजतेराब क़लम॥ लिखू जो सफ़ह पर आवारगाने इश्क का हाल। फिरे बगूले के मानिन्द फिर खराब क़लम ॥ सरीर करती है फ़ातू बसूरतिनका सोआल। हजारो लिखता है मज़मूने लाजेवाव क़लम॥ उससे फ़िक्रउठा दे अब अपने [ से नक़ाब। हुआ निकल के क़लमदाँ से बेहिजाब क़लम ।। तो अब कुछ इस क़लम की कारीगरी गोया तुम्हें दिखाना आवश्यक जान यह 'कलम की कारीगरी" आपको समर्पण है । कृपापूर्वक स्वीकार कर कृतार्थ कीजिए। कृपाभिलाषी ग्रन्थकर्ता मङ्गलाचरण लसत ललित अम्बर अमल मंजुल माल अमन्द। जपति सदा श्री राधिका सह माधव बृजचन्द ॥ सवैया १ आनन्द चन्द अमन्द लखे चख होत चकोरन से ललचो है। त्यों निरखे नव कंज कली मदमत्त मलिन्दन लौं मन मोहै। सो छवि छेम करै कविबद्रीनारायण जू जिय मैं जिय जोहैं। दामिन सी दुति जासु लहै धनधान्य बने घनस्यामहुँ सो हैं। २ है सिर मोर पखा मुरली गर मैं बनमाल विराजत झूलें। गाय चरावत पीत पटा कटि पै जिहकी उपमा नहिं तूलैं॥ बद्रीनारायण जू हिय चोखी चितौन बड़ी अंखियान की हूलें। मोहन की मनमोहनी मूरत, मैनभई मन सों नहि भूलें।