पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१७

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किया और बैलगाड़ियों से व्यापारी मण्डियों में वाणिज्य के सामानों के निर्यात तथा आयात के कार्य की चौधराई स्वीकृति की। दूकानों से माल का लदाना और बनारस, कानपुर आदि शहरों पर सुरक्षित रूप से पहुँचाना, वहाँ से (हुण्डी का) मूल्य लाकर दिलाना इत्यादि काम चौधरी का होता था, जिसके फलस्वरूप गाड़ीवानों से तथा दूकान से कमीशन मिलता था, यही रकम चौधराने की होती थी।

नवाबी के समय में डाक विभाग नहीं था, पर जब अंग्रेजी हुकूमत भी व्यवस्थित हो गई तब मिस्टर उडकट (Woodcut) ने भी पण्डित शीतलप्रसाद जी को बैलगाड़ियों का चौधरी नियुक्त किया।

अब इस व्यवसाय के साथ साथ पण्डित शीतलप्रसाद ने और भी व्यवसायों को प्रारम्भ किया, यहाँ तक कि वे थोड़े ही समय में मिरजापूर के प्रसिद्ध व्यवसायी हो गये।

चौधरी शीतलप्रसाद के एकमेव पुत्र पण्डित गुरुचरणलाल जी की अभिरुचि व्यवसाय में कम रही, वरंच आप विद्या के प्रेमी निकले। अतुलित धन सम्पत्ति के स्वामी इन्हें सदाचार में धन व्यय करने में संकोच न हुआ।

इसी बीच आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द जी सरस्वती इनके यहां पधारे, जिसके फलस्वरूप आपने 'सत्यशास्त्र प्रचारणी' संस्कृत पाठशाला, मुहल्ला लालडिग्गी शहर मिरजापूर में खोली, जिसमें स्वामी जी ने भी कुछ काल तक अध्यापन कार्य किया। बाद में स्वामी जी का सम्पर्क बढ़ा और कई पाठशालायें उन्होंने श्री गुरुचरणलाल से खुलवाईं, जिसमें 'ब्राह्मण वैदिक पाठशाला'-अयोध्या जी में अद्यावधि चल रही है। इसी संस्कृतमय वातावरण में कवि प्रेमघन का संस्कार हुआ। भाद्र कृष्ण षष्ठी, सम्वत् १९१२ में प्रेमघन जी का जन्म हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा काल में ही अपने पितामह के साथ आपने कुछ व्यावसायिक कार्यों को भी सँभालना प्रारम्भ कर दिया।

आपकी माता श्रीमती तुलसीदेवी ने ५ वर्ष की ही अवस्था में इनका विद्यारम्भ करा दिया था, प्राचीन परम्परा के अनुसार आपने गुलिस्तां बोस्तां की फ़ारसी की पुस्तक प्रारंभ में पढ़ी थी। आपके पिता भी फ़ारसी के अच्छे पण्डित थे, वही उस समय की मुख्य भाषा ही थी।

अंग्रेजी भाषा का भी उस समय प्रचार हो रहा था। मिरजापूर में हाई स्कूल न होने के कारण प्रेमघन जी ने फैजाबाद में अंग्रेजी पढ़ना प्रारम्भ किया। यहाँ पर अयोध्या नरेश महाराज प्रतापनारायण सिंह इत्यादि उनके सखा थे।

जब सम्वत् १९२६ में मिरजापूर में अंग्रेजी स्कूल खुल गया तब प्रेमघन जी को वहाँ जाना पड़ा। सम्वत् १९२७ में चौधरी शीतलप्रसाद का स्वर्गवास हो गया