कालिंजर जीत्यो जेहि आन। नर पच्चास हजार प्रमान॥
करि गुलाम ल्यायो दुख दान। औरहु अनगिनतिन करिहान॥
शाह अलाउद्दीन महान। बै प्रत्यक्ष जब काल समान॥
करि अन्याय को अन्त अयान। कियो नास कुल हिन्दुस्तान॥
जब ताही की डरन डरान। भगी सैन ताकी लै प्रान॥
गहि तिनकी इस्त्रीन लुकान। निज दासनहिं कह्यो जेहि आन॥
सत नासिवे काज दुखदान। तिनके बालक अरु कन्यान॥
तिनही के सिर पटकि परान। मारि सबन कीन्यो खरिहान॥
जय खम्भात कियो जेहि आन। हरि असंख्य हिन्दुन के प्रान॥
लियो लूटि घन बेपरिमान। हेम हीर मुक्ता पन्नान॥
सुन्दरीन जुवती बनितान। बीस हजार जासु परमान॥
दासीं लियो बनाय बलान। नहिं संख्या बालक कन्यान॥
तिय धन धरम हरन मन ठान। रोजहिं जुद्ध जुरो दुख दान॥
कियो देस को देस विरान। बार अनेक अनेक स्थान॥
लूटि लूटि धन धरयो महान। हिन्दुन काटि काटि खरिहान॥
कई लाख जन के हरि प्रान। हाय दियो करि हिन्द मसान॥
या खल की खलता अनुमान। लाखन मनुज होय हैरान॥
आपहिं दियों नासि निज प्रान। राखन हेत धर्म अरु मान॥
नितहिं अनीति नई दरसान। नितहिं देश नाशन में ध्यान॥
हा! तुम धर्म भक्ति के काम। करि हिन्दुन के आठो जाम॥
उमड़यो रुधिर समुद्र लमाम। भये तबौं नहिं तृप्यन्ताम॥
हिरनकसिपु हाटकनैनान। कुम्भकरन रावन बलवान॥
कंसादिक राच्छस असुरान। सुने जासु गुन बीच कथान॥
ए उनसै अति अधिक महान। दुष्ट दुराचारी दुख दान॥
तिनसों नहिं कम कोउ विधान। हिंसक सकल जगत अघ खान॥
वे इक वा अनेक दुख दान। एक असंख्य जन हारक प्रान॥
वे दस पांच किये अघआन। इन अघ सेस न सकहिं बखान॥
तासों तुमहुँ भलै अनुमान। अति दुर्बल उनहिन कहुँ जान॥
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