पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१७६

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मृतक शरीर असंख्य महान। बन्द कियो मारग सब थान॥
गयो नगर बनि मनहुँ मसान। मची लूट की तव घमसान॥
रूप हेम हीरा मुकतान। बरतन बसन विना परिमान॥
मुद्रा मोहर न जाय बखान। लिए मनो निज पिता कमान॥
हिन्दन के असंख्य अज्ञान। सुन्दर बालक औ कन्यान॥
बचे कतल तें जाके प्रान। हित लौंडी गुलाम अलगान॥
बहुतेरे हिन्दू मतिमान। कारि यह दशा प्रथम अनुमान॥
पति अरु धरम बचन की आन। जब न लख्यो कोऊ सामान॥
तब स्त्री बालक कन्यान। भरि निज गह में हा तेहि आन॥
कि दियो होलिका समान। फिर धरि धीर वीर बलवान॥
लै कर कलित कराल कृपान। कोपे समर भूमि में आन॥
अरिन मारि मरि गये निदान। सहे न म्लेच्छन के अपमान॥
ऐसहिं पन्द्रह दिन अनुमान। लाखन मनुजन के हरि प्रान॥
जन धन करि निःशेष महान। तब दिल्ली सों कियो पयान॥
इक इक जे सिपाह संग्राम। सौ सौ लौंडी और गुलाम॥
लै संग गये किये इसलाम। भये तबहुँ नहिं तृप्यन्ताम॥
बाबर जीति समर जेहि आन। कैदी हिन्दू गन के प्रान॥
हने दीखि निज दृग दुखदान। मुरदन सों नहि रहे ठिकान॥
रुधिर प्रवाह देखि थल आन। रहि न सके तब करै पयान॥
या विधि बदलि तीन अस्थान। हरे किते हिन्दुन के प्रान॥
जब या खल की डरन डरान। नगर चन्देरी के हिन्दुआन॥
स्त्री बालकन सहित दै प्रान। जौहर करि राख्यो निज मान॥
मुहम्मद बिन कासिम जेहि आन। सिन्ध देश के दर्मीयान॥
लगभग लाखन हिन्दुन प्रान। करि कतलाम हरयो दुखदान॥
लौंडी अरु गुलाम बंधुआन। मनुज पचास हजार प्रमान॥
लै संग गयो हाय दुख दान। करि नगरन अनेक वीरान॥
ऐबक कुतुबुद्दीन महान। मेरठ अरु कोशल दान। दम्र्यान॥
मन्दिर मूरति नासि अयान। हति असंख्य हिन्दुन के प्रान॥