पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२०७

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• १७७ हा भारत हित कारन, हा भारत भय हारन। हा भारत भूमी सों मूरखता तम टारन॥ हा भारत चन्द अमन्द नृप, हरीचन्द सम जौन हो। हा अथै गयो हरिचन्द सो, हाय हाय हरिचन्द सो॥५॥ छप्पय हा हिन्दी सज्जित करि जिन निज हाथ सँवारे। हा हिन्दी जीवन दाता हिन्दी हिय हारे। हा हिन्दी प्यारी सुकुमारी के पिय प्यारे। हा हिन्दी के यौवन दुति दरसावन हारे॥ हा हिन्दी के आधार तुम, हा हिन्दी के मनहरन। हा हिन्दी के हिय हार वर, हिन्दी छवि कारन करन॥६॥ छप्पय हाय हाय हरिचन्द हाय हिन्दुन हितकारी। हा हिन्दू बैरीन हेत साँचहु भय भारी॥ हा हिन्दुन के हक्क धर्म रच्छन प्रनकारी। हा हिन्दुन के दुःख दलन अवगुन गन हारी॥ हा हिन्दुन उत्साहित करन, हा हिन्दुन उन्नति करन। हा हिन्दुन के सुभ सदन मैं, सुख सोभा साँचहु भरन ॥७॥ दोहा अब मैं तो कहँ देत हूँ अन्त यहै आसीस। सत्य आत्मा आप हित देय शान्ति जगदीश ॥