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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२०६

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१७६ हरिश्चन्द्र चन्द्रिका की चन्द्रिका प्रकाशि नभ, हिन्दी ते तिमिर उर्दू को करि छै गयो। कविता कालानि को बढ़ाय रसिकन चकोर, ललचाय हिन्द सिन्धु को उछाह दै गयो। भारत को साँचो चन्द साँचो हरिचन्द सम, साँचो चन्द सम हरीचन्द सो अथय गयो॥२॥ कवित्त राजा औ सितारे हिन्द राय बहादुर, आनरेबिल खिताब लै खराब जग द्वै गयो। लेकचरर एडीटर सेकरेटरी रिफार्मर, जाय कौंसल मैं कोऊ निज नाम कै गयौ। पेट द्रव्य काज भये हाकिम अनेक याने, निदरि सवैई देश हित करतै गयो। भारत को सोभा सिन्धु भारत को बन्धु साँचो, भारत को चन्द हरी चन्द सो अथै गयो॥३॥ छप्पय हा तेरों वह मंजु मनोहर मुख मयंक सम। हा जासों निकरत नित नव कविता अमृतोपम॥ हा तेरो कर ललित लेख लेखत जो हरदम । हा तेरो हिय जित छायो दुख देश सघन तम॥ हा तेरोधन साँचहु सुफल, जो लाग्यो पर काज मैं। हा उपकारी तुव तन सुफल, जीवन भारत राज मैं ॥४॥ छप्पय हा भारत हित लरन अपूरब एक बीर बर। हा भारत हित हेत करन करबाल कमलध र ॥