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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२१

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मास्टर के पोस्ट पर थे प्रेमधन जी के सम्पर्क में आये। और एक घण्टा आनन्द कादम्बिनी प्रेस में कार्य करने के लिए प्रेमघन जी ने इन्हें नियुक्त किया। आप बड़ी पटुता से प्रूफ़ आदि देखते और प्रेस के मैनेजर का कार्य करते रहे।

साहित्यिक अभिरुचि के नाते प्रेमघन जी के साथ अब वे रहने लगे। पर यह समय अधिक दिनों न चल सका। क्योंकि सम्वत् १९४० वैक्रमीय में प्रेमघन जी के पिता ने पाइनियर अखबार में यह नोटिस छपवा दी कि उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति. संस्कृत पाठशाला को वक्फ कर दिया। अब प्रेमघन जी ने अपने सहोदरों के साथ अपने पिता पर दावा किया जो अधिक दिनों तक चलता रहा और बाद में प्रेमघन जी आदि की इलाहाबाद हाईकोर्ट से डिगरी हुई।

पिता से झगड़ा शान्त होने पर अपने भाइयों को जिमींदारी कार्य की देख-रेख: देकर प्रेमघन जी मिरजापूर में रहने लगे, पर आगे चलकर आपको भाइयों से भी बटवारा करना पड़ा, और तत्पश्चात् आपको गोंडा जिले में शीतलगंज ग्रान्ट: नामक ग्राम में अन्तिम समय में रहना पड़ा। सम्वत् १९७८ में प्रेमघन जी शीतलगंज से मिरजापूर चौधराने के कार्य की देख-रेख के लिए गए और वहीं पर फाल्गुन शुल्क १४ सम्वत् १९७८ को आपने अपने शरीर को त्याग कर जाह्नवी की गोदः में सदा के लिए विश्राम ले लिया।

यहां पर एक संक्षिप्त जीवन वृत्त कवि परिचय के लिए लिख दिया गया है, आशा है इससे कवि के बारे में हिन्दी जगत् को कुछ जानकारी हो जाएगी, इसका विस्तार समय पर अन्यत्र किया जायगा।

प्रेमघन जी का जीवन एक कवि तथा गद्य के लेखक के ही रूप में हमें नहीं मिलता है, आपने कविता के क्षेत्र में व्रजभाषा के स्थान पर खड़ीबोली की प्रतिष्ठा सर्वप्रथम स्थापित किया। भारतेन्दु तो अल्प समय तक ही हिन्दी. की सेवा कर सके। जिस प्रकार खड़ीबोली की प्रतिष्ठा आपकी कविता के क्षेत्र में एक देन है, उसी प्रकार गद्य की भाषा का परिष्कार तथा परिमार्जन भी. आपकी विशेषता है।

गद्य के क्षेत्र में आपने गद्य के प्रत्येक अंग पर लिखना प्रारम्भ किया। निबंध, समालोचना को जितनी प्रौढ़ता आपने दी है वह स्तुत्य है। निबंधों के क्षेत्र में व्यक्तिगत निबंध जिनमें “गुप्त गोष्ठीगाथा", "दिल्ली दरबार में मित्र मंडली के यार" बड़े प्रौढ़ निबंध हैं। सामाजिक, साहित्यिक, राजनैतिक, विचारधाराओं को उनके निबंधों में हम पूर्णरूप से पाते हैं।

समालोचना का तो आपने सूत्रपात ही किया, "बंगविजयता" की आलोचना से हमें गुण-दोष निरूपण पद्धति जो आपने “मधुतरंग” नामक पुस्तक पर लिखी थी,